लेखक परिचय : सुदर्शन जी का वास्तविक नाम बद्रीनाथ था उसका । इनका जन्म सियालकोट (वर्तमान पाकिस्तान) बेसन 1895 में हुआ था उनके । इन्होंने उर्दू में प्रकाशित होने वाले दैनिक पत्र ' आर्य - गजट ' के संपादक के रूप में कार्य किया । मुंबई में 16 दिसंबर 1976 को इनका निधन हो गया। इनका दृष्टि को सुधारवादी था ।इनकी पहली कहानी 'हार की जीत ' थी जो सन 1920 में 'सरस्वती' में प्रकाशित हुई थी ।' पुष्पलता', 'सुप्रभात ', 'सुदर्शन सुधा', 'पनघट' इनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह तथा 'परिवर्तन', ' भागवंती ', 'राजकुमार सागर' प्रसिद्ध उपन्यास हैं। सुदर्शन की भाषा सहज, स्वाभाविक, प्रभावी तथा मुहावरेदार है । सुदर्शन को गद्य और पद्य दोनों का महारत हासिल थी । आपने अनेक फिल्मों की पटकथा और गीत भी लिखे।
बात अठन्नी की
रसीला इंजीनियर बाबू जगतसिंह के यहां नौकर था । ₹10 वेतन था ।रसीला इंजीनियर बाबू जगत सिंह के यहां नौकर था । ₹10 वेतन था । गांव में उसके बूढ़े पिता पत्नी एक लड़की और दो लड़के थे। इन सब का भात उसी के कंधो पर था। वह सारी भेज देता पर घर वालों का गुजारा ना चल पाता | उसने इंजीनियर साहब से वेतन बढ़ाने की बार-बार प्रार्थना की परवर हर बार यही कहते, " अगर तुम्हें कोई ज्यादा दे तो अवश्य चले जाओ मैं तनख्वाह नहीं बढाऊंगा।"
वह सोचता, " यहां इतने सालों से हूँ। अमीर लोग पर विश्वास नहीं करते पर मुझ पर यहां कभी किसी ने संदेह नहीं किया। यहां से जाओ तो शायद कोई ज्यादा ग्यारह -बारह दे दे , पर ऐसा आदत ना ही मिलेगा।"
जिला मजिस्ट्रेट शेख सलीमुद्दीन इंजीनियर बाबू के पड़ोस में रहते थे। उनके चौकीदार मियां रमजान और रसीला में बहुत मैत्री थी। दोनों घंटो साथ बैठते, बातें करते हैं। शेख साहब फलों के शौकीन थे, रमजान रसीला फल देता। इंजीनियर साहब को मिठाई शौक था, रसीला रमजान को मिठाई देता।
एक दिन रमजान में रमजान ने रसीला को उदास देखकर कारण पूछा। पहले तो रसीला छुपाता रहा। फिर रमजान ने कहा, " कोई बात नहीं है तो खाओ सौगंध। "
रसीला में रमजान का हट देखा तो आंख भर आई। बोला , " घर से खत आया है, बच्चे बीमार है और रुपया नहीं है। "
"तो मालिक से पेशगी मांग लो। "
" कहते हैं, एक पैसा भी ना दूंगा। "
रमजान से ठंडी साँस भरी। उसने रसीला को ठहरने का संकेत किया और आप कोठरी चला गया। थोड़ी देर बाद उसने कुछ रुपया रसीला केहथेली पर रख दिए। रसीला के मुंह से एक शब्द भी ना निकला। सोचने लगा, " बाबू साहब की मैंने इतनी सेवा की, पर दुख में उन्होंने साथ न दिया। रमजान को देखो गरीब है, परंतु आदमी नहीं, देवता है। ईश्वर उसका भला करें।"
रसीला के बच्चे स्वस्थ हो गए। उसने रमजान का ऋण चुका दिया। केवल आठ आने बाकी रह गए। रमजान में कभी भी पैसे नहीं मांगे फिर भी रसीला उसके आगेआंख ना उठा पाता था।
एक दिन की बात है। बाबू जगत सिंह कमरे में बात कर रहे थे। रसीला ने सुना इंजीनियर बाबू कह रहे हैं, "बस पाँच-सौ ! इतनी सी रकम देकर आप मेरा अपमान कर रहे हैं। "
"हुजूर मान जाईए आप समझे आपने मेरा काम किया है। "
रसीला समझ गया कि अंदर रिश्वत ली जा रही है। सोचने लगा, "रुपया कमाने का यह कितना आसान तरीका। मैं सारा दिन मजबूरी करता हूं तब महीने भर बाद ₹10 हाथ आते हैं। " वह बाहर आया और रमजान को सारी बात सुना दी। रमजान बोला, "बस इतनी सी बात ! हमारे शेख साहब तो उनके भी गुरु है। आज भी एक शिकार फँसा है। हजार से काम तय न होगा। भैया, गुनाह का फल मिलेगा या नहीं, यह तो भगवान जाने, पर ऐसे ही कमाई से कोठिओं में रहते हैं , और एक हम है की परिश्रम करने पर भी हाथ में कुछ नहीं रहता। "
रसीला सोचता रहा। मेरे हाथ से सैकड़ों रुपए निकल गए धर्म न बिगड़ा। एक एक आना भी उड़ता है तो काफी रकम जुड़ जाती। इतने में इंजीनियर साहब ने उसे आवाज लगाई, "रसीला, दौड़ कर ₹5 की मिठाई ले आ। "
रसीला में साढ़े चार रुपए की मिठाई खरीदी और रमजान को अठन्नी लौटकर समझा कि क़र्ज़ उतर गया।
बाबू जगत सिंह मिठाई देखी तो चौंक उठे, "यह मिठाई पांच रूपए की है !"
"हुजूर पांच की ही है। "
रसीला का रंग उड़ गया। बाबू जगतसिंह समझ गए। उन्होंने रसीला से फिर पूछा, रसीला ने फिर वही दोहराया। उन्होंने रसिला के मुंह पर एक तमाचा मारा और कहा , "चल मेरे साथ जहाँ से लाया है। "
" हुजूर, झूठ कहूं तो .... । रसीला ने अभी अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि इंजीनियर बाबू चिल्लाए, "अभी सच और झूठ का पता चल जाएगा अब सारी बात हलवाई के सामने ही करना। "
अब कोई रास्ता ना बचा था। वह बोला, "माई बाप, गलती हो गई। इस बार माफ कर दें। "
इंजीनियर साहब के आंखों से आग बरसने लगे। उन्होंने निर्दयता से रसीला को खूब पिटा फिर घसीटते हुए पुलिस ठाणे के गए। सिपाही के हाथ मेंपांच का नोटरखते हुए बोले, "मनवा लेना। लातों के भूत बातों से नहीं मानते। "
दूसरे दिन मुकदमा शेख सलीमुद्दीन की कचहरी में पेश हुआ । रसीला ने तुरंत अपना अपराध स्वीकार कर लिया। उसने कोई बहाना ना बनाया। चाहता तो कह सकता था की यह साजिश है। मैं नौकरी नहीं करना चाहता इसलिए हलवाई के साथ मिल कर मुझे फसाया जा रहा है, पर एक और अपराध करने का साहस न जुटा पाया। उसकी आंखे खुल गई थी। हाथ जोड़कर बोला, "हुजूर, मेरा पहला अपराध है। इस बार माफ़ कर दीजिए। फिर गलती न होगी।
शेख साहब एक न्यायप्रिय आदमी थे। उन्होंने रसीला को 6 महीने की सजा सुनाई और रुमाल से मुँह पोछा। यह वही रुमाल था जिसमें 1 दिन पहले किसी ने हज़ार रूपए बांध कर दिए थे।
फैसला सुनकर रमजान की आंखों में खून उतर आए। सोचने लगा "यह दुनिया में न्याय नगरी नहीं, अंधेर नगरी है। चोरी पकड़ी गई तो अपराध हो गया। असली अपराधी बड़ी-बड़ी कोठियों में बैठकर दोनों हाथों में धन बटोर रहे है। उन्हें कोई नहीं पड़ता।"
रमजान घर पहुंचा। एक दासी , " रसलीए का क्या हुआ ?"
"छह महीने की कैद। "
"अच्छा हुआ। वह इसी लायक था। "
रमजान ने कहा, "यह इंसाफ नहीं अंधेर है। सिर्फ एक अठन्नी की ही तो बात थी !"
रात में जब हज़ार, पांच सौ के चोर नरम गददो पर मीठी नींद ले रहे थे , अठन्नी का चोर जेल की तंग , अँधेरी कोठरी में पछता रहा था।
- सुदर्शन
👌
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