"बालक एक कच्ची मिट्टी की तरह है। उसका निर्माण उसके चारों ओर का प्रवेश करता है। प्राकृतिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, पारिवारिक एवं स्कूली वातावरण के संदर्भ में उदाहरण देकर एक संक्षिप्त प्रस्ताव लिखिए ।"
बालपन मानव का निर्माण- काल होता है। यह अवस्था उस कोमल पौधे के समान होती है जो विकास की ओर बढ़ रहा होता है और जिसको अपनी इच्छा अनुसार चाहे जिधर मोढ़ा भी जा सकता है। एक बालक एक सफल मनुष्य बन सकता है जब उसकी नीव सुदृध होगी और वह तभी होगी जब उस बालक की परवरिश एक स्वस्थ वातावरण में होगी। चारों ओर का वातावरण बालक के दिमाग पर बहुत गहरा प्रभाव डालता है। वह वही सीखता है जो अपने आस-पास देखता है, और ऐसी ही उसकी जीवन की नींव पढ़नी प्रारंभ होती है।
प्राचीन काल में बालक अपने ब्रह्मचर्य-काल में अपने गुरु से खुले जंगलों में गुरुकुल में पढ़ते थे जहां आस-पास हर जगह हरियाली ही हरियाली होती थी। वे बालक प्रकृति के बहुत समीप होते थे और प्रकृति उनमें नवीन भावनाओं को जन्म देती थी। वे ताजी हवा में सांस लेते थे और ताजे फल-सब्जियां खाते थे, इसलिए सदा हृष्ट-पुष्ट रहते थे। परंतु आजकल के बालक, जो कि शहरों में रहते हैं, प्रकृति के स्वच्छ वातावरण का आनंद नहीं ले पाते और इसी कारण से वे इतने स्वस्थ नहीं है -- ना ही सोच-विचार में और ना ही शरीर में।
गुरुकुल |
स्वस्थ सामाजिक वातावरण एक बालक के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जिस समाज में वो रहता है, बड़ा होता है, उसका प्रभाव उसके विकास पर पड़ता है। स्वार्थी और लालची व्यक्तियों के बीच में रहकर बालक स्वार्थी तथा लालची बनता है। परोपकारी तथा दूसरों की भावनाओं का सम्मान करने वाले व्यक्तियों के समाज में रहकर उसमें भी वैसी ही भावनाएं जन्म लेती है। अतः अच्छा नागरिक व जिम्मेदार व्यक्ति बनने के लिए उसे उचित सामाजिक वातावरण की आवश्यकता होती है।
परिवार का माहौल बालक के मन पर गहरा प्रभाव डालता है। अगर परिवार का माहौल स्वस्थ व स्वच्छ है अथार्त परिवार में लड़ाई-झगड़े नहीं होते, मां-बाप बच्चे का ध्यान रखते हैं, परिवार के सभी सदस्यों ने एक दूसरे की सहायता करने की भावना है और उनका आपस में प्रेम है तो बालक पर ही अच्छा असर पड़ेगा। वह दूसरों की सहायता करने के लिए तत्पर रहेगा। वह हर जगह हँसी-ख़ुशी और शांति बनाए रखना चाहेगा तथा दूसरों की भावनाओं का आदर करेगा। परंतु अगर बालक की पारिवारिक स्थिति ही ठीक नहीं होगी तो वह क्या करेगा ? अथार्त उसके मां-बाप हर समय लड़ते रहते हैं हर समय लड़ते रहते हो, अपने बच्चों को डांटते- फटकारते रहते हो तथा दूसरों की भावनाओं का आदर करती हो तो उस परिवार का बालक चिड़चिड़ा, स्वार्थी तथा प्रेमहीन होगा और उसमें दूसरों की सहायता करने की भावना भी नहीं होगी।
परिवार की आर्थिक स्थिति भी बालक के मन पर बहुत गहरा प्रभाव डालती है। जिस घर की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है वह बालक को हर सुख-सुविधा प्राप्त होती है। इस स्थिति में यह संभव है कि बालक मेहनत करने का मूल्य ना समझ पाए जबकि एक कमजोर आर्थिक स्थिति वाले घर में पलने वाले बालक को अपनी प्रत्येक इक्छा को साकार करने के लिए पुरुषार्थ करना पड़ता है जिससे वह मेहनत का मूल्य समझ पाता है। अतः संपन्न परिवार के अभिभावकों को ध्यान रखना चाहिए कि बालक परिश्रम के महत्व को समझे जिससे उसे अपने जीवन में कभी असफलता की मार ना खानी पड़े।
धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा |
धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा एक बालक के स्वभाव का निर्माण करने में सबसे अहम भूमिका निभाती है। यदि बालक को सही धार्मिक शिक्षा दी जाए, उसमें मानवता की सेवा, दया, प्रेम, सहानुभूति जैसे गुण पैदा किए जाए तो उसमें सर्वधर्म समभाव उत्पन्न होगा अथार्त वह सब धर्मों को समान समझते हुए उनका आदर करेगा।
परिवार के पश्चात स्कूल के वातावरण का बालक के मन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। अगर स्कूल का वातावरण स्वस्थ है तो बालक का स्वभाव भी अच्छा होगा। यदि बालक के मित्रों में दूसरे की सहायता करने की भावना है तो वह भी उन जैसा बन जाएगा । अगर उसके अध्यापक अच्छे हैं तो वह उनका आदर करना सीखेगा और इस प्रकार उसके भीतर अच्छे संस्कार जन्म लेंगे, परंतु अगर बालक की मित्रता बिगड़े हुए बच्चों के साथ है तो वह भी बिगड़ जाएगा। वह कभी भी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे सकेगा। वह अपने अध्यापकों का कभी सम्मान नहीं कर पाएगा। वह जीवन-मूल्यों का महत्व ही नहीं समझ सकेगा, फिर एक सक्षम मनुष्य कैसे बनेगा ?
भ्रटाचार |
अंततः राजनीतिक वातावरण भी एक बालक को ढालने में अहम स्थान रखता है। आजकल का राजनीतिक माहौल बहुत ही अस्वस्थ है। जहां दृष्टि डालो वहीं पर भ्रष्टाचार दिखाई देता है। समाचार-पत्र व टी.वी. के अधिकांश समाचार हिंसा, लूटपाट व भ्रष्टाचार से ही संबंधित होते हैं जिन्हें बालक अपनी आंखों से देखता है, कानों से सुनता है तथा अल्प बुद्धि से सोचता है। ये सभी बातें उसकी विचारधारा पर प्रभाव डालती है।
प्रत्येक बालक इस विश्व का भविष्य है। उसे भी एक दिन अपनी जिम्मेदारियां संभाली है इसलिए प्रत्येक बालक के मां-बाप, अध्यापकों तथा शुभचिंतकों का यह कर्तव्य है कि वे इस बात का ध्यान रखें कि घर तथा स्कूल का वातावरण स्वस्थ हो ताकि उनके जीवन की नींव सुदृढ़ हो और आगे जाकर भी वे जीवन में नई ऊंचाइयां छू सके तथा अपने देश को उच्चतम शिखर पर ले जाने वाले पूर्ण व्यक्तित्व के स्वामी सिद्ध हो सके।
Comments
Post a Comment
Hey, hope you liked the article. Please let me know your views and the topics on which you wish to read the next article. Thanks a lot.